गाजीपुर । पितृपक्ष की शुरुआत शुक्रवार से शुरू हो रही है। 14 अक्तूबर को इसका समापन होगा। पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि से लेकर अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि तक पितृपक्ष चलते हैं। पितृपक्ष श्राद्ध और पिंडदान के लिए यह तिथियां काफी महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। पितृपक्ष के दौरान पूर्वजों को श्रद्धापूर्वक याद करके उनका श्राद्ध कर्म किया जाता है। श्राद्ध न केवल पितरों की आत्मा की शांति के लिए किया जाता है, बल्कि उनके प्रति अपना सम्मान प्रकट करने के लिए भी किया जाता है। मान्यता है कि पितृपक्ष में पितरों का श्राद्ध करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है और हर प्रकार की बाधाओं से मुक्ति मिलती है। पितृपक्ष में श्रद्धा पूर्वक अपने पूर्वजों को जल देने का विधान है। वहीं आचार्य बबुआ पांडेय ने बताया शास्त्रों के अनुसार पितृ 15 दिन तक पृथ्वी पर रहने के बाद अपने लोक लौट जाते हैं। इस दौरान पितृ परिजनों के आसपास रहते हैं। इसलिए इन दिनों कोई भी ऐसा काम नहीं करना चाहिए, जिससे पितृ नाराज हों। आचार्य ने बताया कि पितृपक्ष में रोजाना नियमित रूप से पितरों के लिए तर्पण करना चाहिए। तर्पण के लिए आपको कुश, अक्षत्, जौ और काला तिल का उपयोग करना चाहिए। तर्पण करने के बाद पितरों से प्रार्थना करनी चाहिए, ताकि वे संतुष्ट हों और आपको आशीर्वाद दें। तर्पण के लिए सबसे पहले आप पूर्व दिशा में मुख करके कुश लेकर देवताओं के लिए अक्षत से तर्पण करें। इसके बाद जौ और कुश लेकर ऋषियों के लिए तर्पण करें। फिर उत्तर दिशा में अपना मुख करके जौ और कुश से मानव तर्पण करेंआखिर में दक्षिण दिशा में मुख कर लें और काले तिल व कुश से पितरों का तर्पण करें। तर्पण करने के बाद पितरों से प्रार्थना करें और गलतियों के लिए क्षमा मांगे।
