गोरखपुर और आसपास के लोगों से मारपीट करके करा रहे काम, दूतावास से मांगी मदद।
सूर्यकान्त सिंह, पूर्वांचल प्रेस, गोरखपुर।
लीबिया में फंसे 16 भारतीय मजदूरों की जिंदगी नारकीय बन चुकी है। वह सभी गोरखपुर और आस-पास के इलाके के हैं। बंधक बने इन मजदूरों को फैक्ट्री मालिक के गुंडे जबरन काम कराने पर मजबूर कर रहे हैं। मना करने पर बेरहमी से पिटाई की जा रही है। प्रताड़ना की वजह से सभी मजदूर बुरी तरह सहम गए हैं और अब उनकी रिहाई की उम्मीदें भी टूटने लगी हैं।
संपर्क के सारे रास्ते बंद, घरवाले भी खौफ में फैक्टरी मालिकों ने मजदूरों के सभी मोबाइल छीन लिए हैं, जिससे उनका अपने परिवारों से संपर्क कट चुका है। चोरी-छिपे मैसेज और कॉल के प्रयास भी अब नामुमकिन हो गए हैं। मजदूरों के घरवाले भी अब फोन की घंटी बजते हुए डर के साए में जी रहे हैं, क्योंकि कोई फोन उठाने की हिम्मत नहीं कर रहा।
हाल ही में तीन मजदूरों की रिहाई के बाद बाकी बचे लोगों में डर और निराशा और भी बढ़ गई है। उन्हें लगने लगा है कि अब उनकी रिहाई मुश्किल है।
दूतावास का 15 नवंबर तक रिहाई का वादा, लेकिन चिंता बरकरार
भारतीय दूतावास ने बचे हुए मजदूरों को 15 नवंबर तक देश वापस लाने का आश्वासन दिया है, लेकिन मजदूरों और उनके परिवारों की चिंता बढ़ती जा रही है। ये मजदूर गोरखपुर के झंगहा, गगहा, देवरिया, आजमगढ़, बिहार, गुजरात और आंध्रप्रदेश से हैं, जिन्हें टूरिस्ट वीजा पर लीबिया ले जाकर सीमेंट फैक्टरी में बंधक बना लिया गया। इन मजदूरों को पिछले चार महीने से वेतन भी नहीं मिला है।
बांग्लादेशी मजदूर के फोन से आया आखिरी संदेश बंधकों के बीच एक बांग्लादेशी मजदूर का मोबाइल ही संपर्क का आखिरी जरिया बचा था। मिथलेश नामक मजदूर ने इसी फोन से भारतीय समय अनुसार रात 2:10 बजे अपने पिता रमेश को फोन कर हालात की गंभीरता बताई।
उसने कहा, “सभी के फोन छीन लिए गए हैं और अब हमसे कोई संपर्क नहीं कर पाएगा।” यह फोन आखिरी कड़ी बन चुका है जो मजदूरों और उनके परिवारों को जोड़ रहा था।
लीबिया में बंधकों पर हो रही इस अमानवीयता और उनके परिवारों की बेबसी अब सभी के लिए गहरी चिंता का विषय बन चुकी है। अब सवाल ये है कि क्या ये मजदूर समय पर सुरक्षित अपने वतन लौट पाएंगे, या फिर ये इंतजार और भी लंबा हो जाएगा?